Monday, February 14, 2011

विवेक स्वतंत्रता चाहता है...


व्यक्ति, जितना बुद्धिमान होगा, उतना स्वयं के ढंग से जीना चाहेगा। सिर्फ बुद्धिहीन व्यक्ति पर ऊपर से थोपे गए नियम प्रतिक्रिया, रिएक्शन पैदा नहीं करेंगे। तो, दुनिया जितनी बुद्धिहीन थी, उतनी ऊपर से थोपे गए नियमों के खिलाफ बगावत न थी। जब दुनिया बुद्धिमान होती चली जा रही है, बगावत शुरू हो गई है। सब तरफ नियम तोड़े जा रहे हैं। मनुष्य का बढ़ता हुआ विवेक स्वतंत्रता चाहता है

Sunday, February 6, 2011

धर्म के नाम पर


लाज लुटती है दंगों में किसी सीता की
सारे पैगम्बरों की नींद उचट जाती है
कत्ल जब राम का कोई रहीम करता है
कुरान-ए-पाक भी उदासी में सिमट जाती है
लाश बेटे की आंसुओं से भीगोने वाला
बाप तो बाप है हिंदू या मुसलमान नहीं
मां की रोती हुई ममता की कोई जात नहीं
बहन के गम की कोई मजहबी पहचान नहीं
जो हुमायुं की कलाई पर बांधे थे कभी
तुम्हें कसम उन रेशमी धागों की
कसम है तुम्हें नानक ओ चिश्ती की आत्माओं की
सारी दुनिया को जो पैगाम-ए-अमन देती हैं
अब कोई कत्ल न हो मजहबी जुनूं के लिए
धर्म के नाम पर कोई लाश न गिरने पाए
अब कोई मां न करे जवां बेटे को रुखसत
किसी बहन के हाथों में राखी मुरझाए
हैं एक मां के बेटे, सारे ही देशवासी
बाहें गले में डाले, मिलकर चलें दुबारा
सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, ये गुलसितां हमारा.

साभार  - दिलचस्प