Wednesday, May 26, 2010

देखा है भीड़ को

देखा है भीड़ को ढोते हुए 
अनुशासन का बोझा,
उछालते हुए अर्थहीन नारे, 
लड़ते हुए दूसरों का युद्ध।
खोदते हुए अपनी कब्रें, 

पर .....नहीं सुना .....

तोड़ लिया हो 
कभी किसी भीड़ ने व्यक्ति की अंत:स्चेतना में खिला
अनुभूति का आम्लान पारिजात.....




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Friday, May 21, 2010

विकासशील नहीं, आज हम विकसित होते


                      -पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख
भारत के सबसे युवा व नौवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी के न होने का खामियाजा आज हम इस रूप में भुगत रहे हैं कि हमारा देश अब भी विकासशील देशों की श्रेणी में खड़ा जद्दोजहद कर रहा है। यदि राजीव गांधी हमारे बीच होते तो निश्चित ही देश विकसित देशों की फेहरिस्त में शामिल होता। देश के इस सपूत व बेहद मृदु भाषी व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री को हमने आज ही के दिन खो दिया था। उनकी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान विस्फोट से हत्या कर दी गई थी। यह दसवीं लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार का समय था, जो निहित ही स्वार्थी नेताओं द्वारा देश के माथे पर थोंपा गया।  देश के इस युवा नेता के लिए 23 जून 1980 का दिन बेहद उथल-पुथल व परिवर्तन लेकर आया। दरअसल, छोटे भाई संजय गांधी की विमान हादसे में मौत और मां इंदिरा गांधी का राजनीति में आने का आदेश मिलने के बाद न चाहते हुए भी राजनीति में कूदे थे। संजय गांधी शुरुआत से ही राजनीति में रुचि रखते थे, जबकि राजीव गांधी राजनीति से कोसों दूर थे। मुंबई में जन्मे और दून स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 1961 में लंदन का रुख किया। इसी दौरान वर्ष 1965 में सोनिया गांंधी से मुलाकात के बाद 1968 में उनसे शादी की। इसी बीच वे इंडियन एयर लाइंस में बतौर पायलट सेवा देने लगे। लेकिन संजय गांधी की आकस्मिक मौत के बाद उन्हें 1981 में अमेठी से पहला चुनाव लडऩा पड़ा और शरद यादव को करीब दो लाख मतों से हराते हुए रिकॉर्ड जीत हासिल की। वर्ष 1984 में उन्होंने मेनका गांधी को इसी सीट से हराया। यहां से लोकसभा पहुंचने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता शुरू हो चुकी थी और उनकी छवि बेहद सौम्य, अविचल मुस्कान व मृदु भाषी वाली बनती गई। वे कांग्रेस महासचिव भी बने और राजनीतिक पारंगत्ता का परिचय देते हुए उन्होंने श्रीमति इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद लोकसभा चुनाव समय पूर्व करवाए। जबकि वे निर्वाचित सदस्य भी थे और कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत था। उनकी सूझबूझ का नतीजा यह था कि भारत के इतिहास में कांग्रेस ने 542 में से 411 सीटें जीतकर एक नया रिकार्ड बनाया और देश के प्रथम युवा प्रधानमंत्री के रूप में हमें राजीव गांधी मिले। वे 31 अक्टूटर 1984 से दो दिसंबर 1989 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। जिस संचार क्रांति पर आज हम और पूरा भारत देश हुंकार भरता है, उसे भारत स्थली पर खड़ा करने का श्रेय इन्हीं युगदृष्टा को जाती है। बकौल गांधी, 'मैं युवा हूं और मेरे कुछ सपने हैं, जिनमें सबसे बड़ा स्वप्न यह है कि मेरा देश स्वतंत्र, सशक्त और आत्मनिर्भरता के साथ मानवता की सेवा करने वाला अग्रणी राष्ट्र हो।' शायद यही वजह थी कि उन्होंने एक एतिहासिक निर्णय लेते हुए मतदान की निर्धारित न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष को घटाकर 18 वर्ष किया, जो निश्चित ही देश के युवाओं के लिए सौगात थी। युवा सोच के मद्देनजर ही उन्होंने देश में कंप्यूटर क्रांति को जन्म दिया और आज देश में ऑफिस से लेकर घरों तक ही नहीं बल्कि सड़कों पर लैपटोप नुमा कंप्यूटर के साथ देश प्रगति के सौपानों को छू रहा है। यही नहीं उन्होंने भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर भी विशेष रणनीति अख्तियार की, लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। निसंदेह राजीव गांधी एक ऐसे शासनाध्यक्ष थे जिन्होंने सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस किया और माना कि जनकल्याण के लिये केंद्र से भेजे गये एक रूपये में से 87 पैसे भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ जाता है। उधर तत्कालीक समय में आतंक भी सर चढ़ कर बोल रहा था। पंजाब से लेकर असम तक आतंकवादी गतिविधियां चरम पर थीं। पंजाब में आतंकवाद को लेकर उन्होंने संत हरचरण सिंह लोंगोवाल समझौता किया, जिसकी परिणति आतंकवाद खत्म हो सका। असम में अलग समस्या थी, यहां पंजाबियों और मारवाडिय़ों का स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे, लेकिन गांधी ने इस खाई का पाटने का अहम प्रयास किया। लेकिन अंतत: यही आतंकी साया और मानवीय कू्रर रूप ने युवा राजीव  को लील गया। 21 मई 1991 के दिन एक आत्मघाती महिला विस्फोटक ने उन्हें हमसे छीन लिया। निश्चित ही आज देश में उनकी कमी खल रही है, वर्तमान राजनीतिक दुराचार, गिरते स्तर व नेताओं के ओछेपन के चलते देश के लोग उन जैसे प्रधानमंत्री की चाह रखते हैं।



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Wednesday, May 19, 2010

मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये...

मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये।
वन्दे मातरम का होता विरोध देखिये।
देखिये जरा ये नई भाषाओ का व्याकरण।
भारती के अपने ही बेटो का ये आचरण।
वन्दे-मातरम नही विषय है विवाद का।
मजहबी द्वेष का न ओछे उन्माद का।
वन्दे-मातरम पे ये कैसा प्रश्न-चिन्ह है।
माँ को मान देने मे औलाद कैसे खिन्न है।
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मात भारती की वंदना है वन्दे-मातरम।
बंकिम का स्वप्न कल्पना है वन्दे-मातरम।
वन्दे-मातरम एक जलती मशाल है।
सारे देश के ही स्वभीमान का सवाल है।
आह्वान मंत्र है ये काल के कराल का।
आइना है क्रांतिकारी लहरों के उछाल का।
वन्दे-मातरम उठा आजादी के साज से।
इसीलिए बडा है ये पूजा से नमाज से।
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भारत की आन-बान-शान वन्दे-मातरम।
शहीदों के रक्त की जुबान वन्दे-मातरम।
वन्दे-मातरम शोर्य गाथा है भगत की।
मात भारती पे मिटने वाली शपथ की।
अल्फ्रेड बाग़ की वो खूनी होली देखिये।
शेखर के तन पे चली जो गोली देखिये।
चीख-चीख रक्त की वो बूंदे हैं पुकारती।
वन्दे-मातरम है मा भारती की आरती।
(विरोध करने वालो ने कहा की मुसलमान वंदे-मातरम इसलिए नही गायेंगे क्योंकि उनका मजहब इसके पक्ष में नही है....तब एक प्रश्न जन्म लेता है...की क्या जिन मुसलमानों ने वंदे मातरम गाते गाते अपने प्राण माँ भरती के चरणों में समर्पित कर दिए वो सच्चे मुसलमान नही थे....या जो विरोध कर रहे हैं वो सच्चे मुसलमान नही हैं॥?)

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वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं।
पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं।
आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की।
कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की।
गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता।
सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता।
हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के।
बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के।
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गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या।
सत्ता माँ की वंदना से बड़ी हो गई है क्या।
देश तज मजहबो के जो वशीभूत हैं।
अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं।
माथे पे लगा के माँ के चरणों की ख़ाक जी।
चढ़ गए हैं फांसियों पे लाखो अशफाक जी।
वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है।
वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है। 

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Tuesday, May 18, 2010

शिव मंदिर 'तेजो महालय' या मुमताज का मकबरा 'ताजमहल'

श्रीगंगानगर। बचपन से ही सुनते आए हैं कि देश की सबसे खूबसूरत इमारत 'ताजमहल' को शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में बनवाया है। स्कूल किताबें हों या समाचार-पत्रों के पन्ने हर जगह यही तथ्य सामने आया है। प्रो.पीएन ओक को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि 'ताजमहल शाहजहां ने बनवाया था। निश्चित ही प्रो. ओक की दामों में कुछ दम है और यदि ये सही हैं तो इस पर हर भारतीय को गौर करना चाहिए तथा उस छुपे हुई हकीकत और तथ्य को दुनिया के सामने लाना चाहिए। प्रो.ओक. अपनी पुस्तक 'TAJ MAHAL - THE TRUE STORY' द्वारा इस बात में विश्वास रखते हैं कि सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था। ओक कहते हैं कि ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर, एक हिंदू प्राचीन शिव मन्दिर है जिसे तब 'तेजो महालय' कहा जाता था। अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर लिया था। ओक के अनुसार शाहजहां के दरबारी लेखक मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी ने अपने 'बादशाहनामा' में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है। जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है कि, शाहजहां की बेगम मुमताज-उल-जमानी जिसे मृत्यु के बाद, बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके 06 माह बाद, तारीख 15 जमदी-उल-ओवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया गया। फिर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए, आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुन: दफनाया गया। लाहौरी के अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे ,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे। इस बात कि पुष्टि के लिए यहां ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो शाहजहां द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा जयसिंह को दिए गए थे.......
यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्राय: मृत दरबारियों और राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और भवनों का प्रयोग किया जाता था। उदाहरनार्थ हुमायूं, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे दफनाये गए हैं .... प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------
''महल' शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता। यहां यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम से कम दो प्रकार से तर्कहीन है। पहला --शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था, बल्कि उसका नाम मुमताज-उल-ज़मानी था। और दूसरा --किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग (मुम) को छोड़ दिया जाए, यह समझ से परे है। प्रो.ओक दावा करते हैं कि, ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का बिगड़ा हुआ संस्करण है। साथ ही साथ ओक कहते हैं कि-- मुमताज और शाहजहां कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है क्योंकि शाहजहां के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की पुष्टि नही करता है। इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षत: समर्थन कर रहे हैं..... तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान् शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था। ओक के अनुसार न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़ के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना ह। मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था। यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था। फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था। प्रो. ओक बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषत: हिंदू शिव मन्दिर है। आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। प्रो. ओक जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूंद बूंद कर पानी टपकता रहता है। यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूंद बूंद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है। फिर ताजमहल (मकबरे) में बूंद बूंद कर पानी टपकाने का क्या मतलब....????
प्रो. पीएन ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में खुलवाए और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे।
जऱा सोचिये....!!!!!!
कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतय: सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से एक भवन, 'तेजो महालय' को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहां को क्यों......?????
तथा....... इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????
आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.....
रूहें लिपट के रोती हैं हर खासों आम से.....
अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से....
फिऱ भी यहां जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......  

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Thursday, May 6, 2010

ऐसा देश है मेरा: तो फिर मरना क्या हैं ?

ऐसा देश है मेरा: तो फिर मरना क्या हैं ?

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तो फिर मरना क्या हैं ?

शहर की इस दौड में दौड के करना क्या है ? ? ? ? ? ?

अगर यही जीना हैं दोस्तों........ तो फिर मरना क्या हैं ?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िकर हैं......
भूल गये भींगते हुए टहलना क्या हैं ? ? ? ? ? ?

सीरियल के सारे किरदारो के हाल हैं मालुम......
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुरसत कहाँ हैं ! ! ! ! ! ! ! !

अब रेत पर नंगे पैर टहलते क्यों नहीं.......
१०८ चैनल हैं पर दिल बहलते क्यों नहीं ! ! ! ! ! ! ! !

इंटरनेट पे सारी दुनिया से तो टच में हैं.........
लेकिन पडोस में कौन रहता हैं जानते तक नहीं ! ! ! ! ! ! ! ! !

मोबाईल, लैंडलाईन सब की भरमार हैं........
लेकिन ज़िगरी दोस्त तक पहुंचे ऐसे तार कहाँ हैं !! ! ! ! ! ! !

कब डूबते हुए सूरज को देखा था याद हैं ?? ? ? ? ? ?
कब जाना था वो शाम का गुजरना क्या हैं !! ! ! ! ! !

तो दोस्तो इस शहर की दौड में दौड के करना क्या हैं?? ? ? ? ? ? ?
अगर यही जीना हैं तो फिर मरना क्या हैं ! ! ! ! ! ! !