-पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख
भारत के सबसे युवा व नौवें प्रधानमंत्री राजीव गांधी के न होने का खामियाजा आज हम इस रूप में भुगत रहे हैं कि हमारा देश अब भी विकासशील देशों की श्रेणी में खड़ा जद्दोजहद कर रहा है। यदि राजीव गांधी हमारे बीच होते तो निश्चित ही देश विकसित देशों की फेहरिस्त में शामिल होता। देश के इस सपूत व बेहद मृदु भाषी व्यक्तित्व के धनी प्रधानमंत्री को हमने आज ही के दिन खो दिया था। उनकी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान विस्फोट से हत्या कर दी गई थी। यह दसवीं लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार का समय था, जो निहित ही स्वार्थी नेताओं द्वारा देश के माथे पर थोंपा गया। देश के इस युवा नेता के लिए 23 जून 1980 का दिन बेहद उथल-पुथल व परिवर्तन लेकर आया। दरअसल, छोटे भाई संजय गांधी की विमान हादसे में मौत और मां इंदिरा गांधी का राजनीति में आने का आदेश मिलने के बाद न चाहते हुए भी राजनीति में कूदे थे। संजय गांधी शुरुआत से ही राजनीति में रुचि रखते थे, जबकि राजीव गांधी राजनीति से कोसों दूर थे। मुंबई में जन्मे और दून स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वर्ष 1961 में लंदन का रुख किया। इसी दौरान वर्ष 1965 में सोनिया गांंधी से मुलाकात के बाद 1968 में उनसे शादी की। इसी बीच वे इंडियन एयर लाइंस में बतौर पायलट सेवा देने लगे। लेकिन संजय गांधी की आकस्मिक मौत के बाद उन्हें 1981 में अमेठी से पहला चुनाव लडऩा पड़ा और शरद यादव को करीब दो लाख मतों से हराते हुए रिकॉर्ड जीत हासिल की। वर्ष 1984 में उन्होंने मेनका गांधी को इसी सीट से हराया। यहां से लोकसभा पहुंचने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता शुरू हो चुकी थी और उनकी छवि बेहद सौम्य, अविचल मुस्कान व मृदु भाषी वाली बनती गई। वे कांग्रेस महासचिव भी बने और राजनीतिक पारंगत्ता का परिचय देते हुए उन्होंने श्रीमति इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद लोकसभा चुनाव समय पूर्व करवाए। जबकि वे निर्वाचित सदस्य भी थे और कांग्रेस के पास पूर्ण बहुमत था। उनकी सूझबूझ का नतीजा यह था कि भारत के इतिहास में कांग्रेस ने 542 में से 411 सीटें जीतकर एक नया रिकार्ड बनाया और देश के प्रथम युवा प्रधानमंत्री के रूप में हमें राजीव गांधी मिले। वे 31 अक्टूटर 1984 से दो दिसंबर 1989 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। जिस संचार क्रांति पर आज हम और पूरा भारत देश हुंकार भरता है, उसे भारत स्थली पर खड़ा करने का श्रेय इन्हीं युगदृष्टा को जाती है। बकौल गांधी, 'मैं युवा हूं और मेरे कुछ सपने हैं, जिनमें सबसे बड़ा स्वप्न यह है कि मेरा देश स्वतंत्र, सशक्त और आत्मनिर्भरता के साथ मानवता की सेवा करने वाला अग्रणी राष्ट्र हो।' शायद यही वजह थी कि उन्होंने एक एतिहासिक निर्णय लेते हुए मतदान की निर्धारित न्यूनतम आयु सीमा 21 वर्ष को घटाकर 18 वर्ष किया, जो निश्चित ही देश के युवाओं के लिए सौगात थी। युवा सोच के मद्देनजर ही उन्होंने देश में कंप्यूटर क्रांति को जन्म दिया और आज देश में ऑफिस से लेकर घरों तक ही नहीं बल्कि सड़कों पर लैपटोप नुमा कंप्यूटर के साथ देश प्रगति के सौपानों को छू रहा है। यही नहीं उन्होंने भ्रष्टाचार के खात्मे को लेकर भी विशेष रणनीति अख्तियार की, लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। निसंदेह राजीव गांधी एक ऐसे शासनाध्यक्ष थे जिन्होंने सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस किया और माना कि जनकल्याण के लिये केंद्र से भेजे गये एक रूपये में से 87 पैसे भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ जाता है। उधर तत्कालीक समय में आतंक भी सर चढ़ कर बोल रहा था। पंजाब से लेकर असम तक आतंकवादी गतिविधियां चरम पर थीं। पंजाब में आतंकवाद को लेकर उन्होंने संत हरचरण सिंह लोंगोवाल समझौता किया, जिसकी परिणति आतंकवाद खत्म हो सका। असम में अलग समस्या थी, यहां पंजाबियों और मारवाडिय़ों का स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे, लेकिन गांधी ने इस खाई का पाटने का अहम प्रयास किया। लेकिन अंतत: यही आतंकी साया और मानवीय कू्रर रूप ने युवा राजीव को लील गया। 21 मई 1991 के दिन एक आत्मघाती महिला विस्फोटक ने उन्हें हमसे छीन लिया। निश्चित ही आज देश में उनकी कमी खल रही है, वर्तमान राजनीतिक दुराचार, गिरते स्तर व नेताओं के ओछेपन के चलते देश के लोग उन जैसे प्रधानमंत्री की चाह रखते हैं।
rajiv ji wakai me mhan the...........un jesa koi nhi ho skta .........
ReplyDelete