Wednesday, May 26, 2010

देखा है भीड़ को

देखा है भीड़ को ढोते हुए 
अनुशासन का बोझा,
उछालते हुए अर्थहीन नारे, 
लड़ते हुए दूसरों का युद्ध।
खोदते हुए अपनी कब्रें, 

पर .....नहीं सुना .....

तोड़ लिया हो 
कभी किसी भीड़ ने व्यक्ति की अंत:स्चेतना में खिला
अनुभूति का आम्लान पारिजात.....




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3 comments:

  1. जरा यह तो बता देते यह कहाँ और क्यों की भीड़ है / रोचक प्रस्तुती /

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  2. ये वो भीड़ है जनाब, जो नेताओं द्वारा पैदा किए गए भ्रम के बाद अक्सर हमारे देश की सड़कों पर दिखाई देती है। फिर वो भीड़ चाहे कश्मीर में सोनिया गांधी के विरोध में हो या राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की या फिर संसद पर कथित तौर पर महंगाई दूर करने की। और दर्द वो, जो हम हर दिन सहते हैं .... चाहे मैंगलोर में प्लेन हादसा हो या राजस्थान में बस गिरने से कई मासूमों की मौत, या फिर दंतेवाड़ा व जम्मू-कश्मीर में हमारे जवानों की शहादत या फिर मुंबई, जयपुर, पुना में आतंकियों के करतूतों से पैदा हुआ दर्द..

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  3. प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई

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