Saturday, January 30, 2010

मौन का सागर

मौन का सागर बना अपार, मैं इस पार - तू उस पार
कहीं तो रोके अहं का कोहरा, कहीं दर्प की खड़ी दीवार
शब्दों की नैया को बाँधे, खड़े रहे मंझधार।
शाख मान की झुकी नहीं, बहती धारा रुकी नहीं
कुंठाओं के गहन भंवर में, छूट गई पतवार
सुनो पवन का मुखरित गान, अवसादों का हो अवसान
संग ले गई स्वप्न सुनहले, खामोशी पतझार
लहरें देती नम्र निमंत्रण, संध्या का स्नेहिल अनुमोदन
अस्ताचल का सूरज कहता, खोलो मन के द्वार



प्रस्तुति - गरिमा बिश्नोई 

अंतिम पल तक तरसी अखियां

अंतिम पल तक तरसी अखियां

Monday, January 25, 2010

मां तुझे सलाम...




     इंडिया गेट से लेकर कस्बों तक गणतंत्र-गणतंत्र
देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्नेह लिए 26 जनवरी का दिन प्रत्येक भारतीय के लिए अहम है। इस दिन हर भारतीय अपनी निजी जिंदगी की मुसीबतों को तिलांजलि देते हुए देश के प्रति भाव-विभोर हो उठता है। वैसे भी कई महत्वपूर्ण स्मृतियां 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस से जुड़ी हुई हैं। आज ही के दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में तिरंगे को फहराया था तथा स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। इसके बाद आई वह अहम खड़ी, जब 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र तथा तंत्र का संविधान देश में लागू हुआ। स्मृतियां यहीं खत्म नहीं होती, आज के दिन वर्ष 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित की गई। इसके अलावा वर्ष दर वर्ष ऐसे मौके आते रहे, जब गणतंत्र दिवस पर विशेष घोषणाएं हुई। फेहरिस्त काफी लंबी है, जो निरंतर बढ़ती जाएगी। यही वजह है कि इस विशेष दिन को और अधिक विशेष बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस बड़े उत्साह, उल्लास व धूमधाम के साथ पूरे देश में मनाया जाता है। बात हो, एकता-अखंडता की तो इसके बकायदा सामूहिक तौर पर नई दिल्ली स्थित लाल किले पर विशेष आयोजन किया जाता है। यहां अलग-अलग राज्यों से आई विशेष टीमें देश की विभिन्न मनमोहक छटाओं को प्रदर्शित करती हैं। वहीं राजपथ से गुजरती रोम-रोम को गौरवान्वित करने वाली विशेष परेड जब लाल किले पर पहुंचती है तो देश का कोना-कोना गदगद हो उठता है। गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का शुभारंभ प्रधानमंत्री द्वारा देश की शान व शहादतों को सलाम करते 'इंडिया गेट' पर अमर जवान ज्योति पर पुष्प अर्पित करने के साथ होता है। यहां देश के लिए जान न्यौछावर कर देने वाले वीर जवानों को 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके साथ ही महामहीम राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर राष्ट्रीय गान शुरू किया जाता है। अतिथि देवोभव: की संस्कृतिक का निर्वाह करते हुए आज के दिन एक विदेश मेहमान को भी इस विशेष कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता है, जिन्हें मुख्य अतिथि का दर्जा दिया जाता है। 
लाल किले पर होने वाले इस विशेष आयोजन का दूरदर्शन के जरिए पूरे देश में सीधा प्रसारण किया जाता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बैठे भारतीय इस विशेष आयोजन को लुत्फ उठाते हैं। लाल किले से जब प्रधानमंत्री देशवासियों को संबोंधित करते हैं तो लगता है हर कोई लाल किले मे ही विराजित हो। साथ ही जब परेड के दौरान भारतीय सेना द्वारा अत्याधुनिक हथियारों प्रदर्शन किया जाता है तो हर नागरिक खुद को महफूज समझता है तथा जवानों के हैरतअंगेज कारनामों को देख जवानों के प्रति श्रद्धाभाव करता है। परेड के बाद बाद महामहीम राष्ट्रपतिभारतीय जवानों को बहादुरी के लिए सम्मानित करते हैं। यहीं वीरता दिखा चुके नागरिकों और बालकों को भी सम्मानित किया जाता है। सशस्त्र सेना के हेलिकॉप्टर लाल किले में बैठे हजारों हिंदुस्तानियों पर गुलाब की बारिश करते हैं। राज्यों से आई झांकियां अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक छटा, विशेष त्यौहार, पर्यटन स्थल और कला को प्रदर्शित करते हैं, जहां भारत एक माला में पिरोया हुआ नजर आता है। तीन दिनी इस विशेष आयोजन के तहत 27 जनवरी को इंडिया गेट पर प्रधानमंत्री रैली का आयोजन किया जाता है, जिसमें एनसीसी केडेट्स रोमांचित करने वाले कारनामें पेश करते हैं। 29 जनवरी के दिन शाम छह बजे बीटिंग द रिट्रीट के साथ ही कार्यक्रम को समापन किया जाता है। इस दिन तीनों सेना टुकडिय़ों द्वारा रग-रग को रोमांचित कर देने वाली विशेष धुन 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा...' को पेश की जाती है। इसके बाद तिरंगा उतार जाता है। इस मौके पर राष्ट्रगान भी गाया जाता है। उधर आज के दिन पूरे देशभर में भी गणतंत्र दिवस पर विशेष आयोजन होते हैं। छोटे-छोटे कस्बों में स्थित राजकीय स्कूलों व निजी स्कूलों में विशेष कार्यक्रम होते हैं। देश के भविष्य नन्हे-मुन्ने आज के दिन के बारे में कई बातें जानते हैं और उनमें देशभक्ति का संचार होता है। इसी तरह प्रत्येक राज्य की राजधानी में आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में  राज्यपाल महोदय झंडारोहण करते हैं। कार्यक्रम के दौरान विशेष झांकियों, परेड, प्रदर्शन व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। निश्चित रूप से आज का दिन हर देशवासी के लिए के लिए खास है और हमें गौरव है कि ......हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है.......

Friday, January 22, 2010

खबर...

**सुबह से लेकर रात तक.. भागती रहती है ये जिंदगी ..
कभी इस खबर.. कभी उस खबर.. मैं .. बेखबर सा होकर घूमता रहता हूँ..
बदबूदार लाशें... नालियों में सड़ती नवजात बेटियाँ... तो बेटो के जन्मोत्सव..
चौराहे पर एक कट चाय पीकर... मुई फिर भी कविता लिख लेता हूँ...
** निर्मोही सा ... अब ये मन .. नहीं पसीजता किसी घटना से.....
मोहल्ले के कुत्ते की मौत पर.... मैं कभी बहुत रोया था.... 
अब नर संहारो से भी कोई सरोकार नहीं ....
फिर भी देर रात घर लौटते वक्त.. मैं मुंडेर पर ..चिडियों का पानी भर लेता हूँ...
***परिभाषा काल की मुझे नहीं मालुम.. जाने कब क्या हो...
कोई मिला तो हंस लिए...न मिला तो चल दिए...
पदचाप अपने ...निशब्द भी मिले... तो यूंही कुछ गुनगुना लिया...
मैं कैमरा अपना पैक करके ..छोटे से कमरे का .. झाडू-पोंचा कर लेता हूँ... 
षडयंत्र..राजनीति.. विरोध ..प्रदर्शन... जीवन के अब सामान्य पहलु से हो चले ...
गोपाल..बंटी...गोलू...आबिद की...याद बहुत आती है..खेतों की मिट्टी में गुजरा था बचपन..
अब धमाको में उड़े.. बच्चों का खून...
अपनी खबर देखते-देखते... मै अपने जूतों से चुपचाप साफ कर लेता

देश की धरती

मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊं सजा कर भाल जब भी, कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित, रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
मांज दो तलवार, लाओ न देरी, बांध दो कस कर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी, शीश पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
तोड़ता हूं मोह का बन्धन, क्षमा दो, गांव मेरा, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो
यह सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का त्रण त्रण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं....


प्रस्तुति : देव अरोड़ा

यात्रा और यात्री

सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता, चल रहा आकाश भी है, शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,
पांव के नीचे पड़ी, अचला नहीं, यह चंचला है, एक कण भी, एक क्षण भी, एक थल पर टिक न पाता,
शक्तियां गति की तुझे, सब ओर से घेरे हुए हैं, स्थान से अपने तुझे, टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!
सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
थे जहां पर गर्त पैरों को ज़माना ही पड़ा था, पत्थरों से पांव के, छाले छिलाना ही पड़ा था
घास मखमल-सी जहां थी, मन गया था लोट सहसा थी घनी छाया जहाँ पर, तन जुड़ाना ही पड़ा था
पग परीक्षा, पग प्रलोभन, ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू, इस तरफ डटना उधर, ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
शूल कुछ ऐसे पगो में, चेतना की स्फूर्ति भरते, तेज़ चलने को विवश करते, हमेशा जबकि गड़ते
शुक्रिया उनका कि वे पथ को रहे प्रेरक बनाए, किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने के लिए मजबूर करते
और जो उत्साह का देते कलेजा चीर, ऐसे कंटकों का दल तुझे दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
सूर्य ने हंसना भुलाया, चंद्रमा ने मुस्कुराना, और भूली यामिनी भी तारिकाओं को जगाना
एक झोंके ने बुझाया, हाथ का भी दीप लेकिन, मत बना इसको पथिक तू बैठ जाने का बहाना
एक कोने में हृदय के आग तेरे जग रही है, देखने को मगर तुझे जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
वह कठिन पथ और कब उसकी मुसीबत भूलती है, सांस उसकी याद करके, भी अभी तक फूलती है
यह मनुज की वीरता है, या कि उसकी बेहयाई, साथ ही आशा सुखों का स्वप्न लेकर झूलती है
सत्य सुधियां, झूठ शायद स्वप्न, पर चलना अगर है, झूठ से सच को तुझे छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
सांस चलती है तुझे, चलना पड़ेगा ही मुसाफिर!


साभार : श्री हरिवंश राय बच्चन
प्रस्तुति : गरिमा बिश्नोई 

Thursday, January 21, 2010

खबरों की खबर

खबरों की खबर वह रखते हैं, अपनी खबर हमेशा ढंकते हैं,
दुनियां भर के दर्द को अपनी, खबर बनाने वाले,अपने वास्ते बेदर्द होते हैं,
आंखों पर चश्मा चढ़ाये, कमीज की जेब पर पेन लटकाये, कभी कभी हाथों में माइक थमाये
चहूं ओर देखते हैं अपने लिये खबर, स्वयं से होते बेखबर, कभी खाने को तो कभी पानी को तरसे
कभी जलाती धूप तो कभी पानी बरसे, दूसरों की खबर पर फिर लपक जाते हैं
मुश्किल से अपना छिपाते दर्द होते हैं, लाख चाहे कहो, आदमी से जमाना होता है
खबरची भी होता है आदमी, जिसे पेट के लिये कमाना होता है

दूसरों के दर्द की खबर देने के लिये, खुद का पी जाना होता है
भले ही वह एक क्यों न हो, उसका पिया दर्द भी, जमाने के लिए गरल होता, खबरों से अपने महल सजाने वाले
बादशाह चाहे, अपनी खबरों से जमाने को, जगाने की बात भले ही करते हों
पर बेखबर अपने मातहतों के दर्द से होते हैं, कभी कभी अपना खून पसीना बहाने वाले खबरची
खोलते हैं धीमी आवाज में अपने बादशाहों की पोल, पर फिर भी नहीं देते खबर, अपने प्रति वह बेदर्द होते हैं...


प्रस्तुति : देव अरोड़ा 

Tuesday, January 19, 2010

वो भारत देश है मेरा ...........






हां डाल डाल पर, सोने की चिडिय़ां करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा। जहां सत्य अहिंसा और धर्म का, पग-पग लगता डेरा, वो भारत देश है मेरा। ये धरती वो जहां ऋषि मुनि, जपते प्रभु नाम की माला, जहाँ हर बालक एक मोहन है, और राधा हर एक बाला, जहां सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा, वो भारत देश है मेरा। अलबेलों की इस धरती के, त्योहार भी हैं अलबेले, कहीं दीवाली की जगमग है~~कहीं हैं होली के मेले, जहां राग रंग और हंसी खुशी का, चारों ओर है घेरा वो भारत देश है मेरा। जहां आसमान से बातें करते, मंदिर और शिवाले, जहां किसी नगर में किसी द्वार पर~~~~कोई न ताला डाले, प्रेम की बंशी जहां बजाता, है ये शाम सवेरा-------वो भारत देश है मेरा

Sunday, January 10, 2010

7 अनजाने 'प्रथम' तथ्य हिन्दी फिल्मों के पहली हिन्दी फिल्म कौन सी थी? राजा हरिश्चन्द्र। पहली बोलती फिल्म ? आलमआरा... ये तथ्य तो लगभग सभी जानते हैं। लेकिन कुछ ऐसे तथ्य भी हैं जो काफी कम लोग जानते हैं। ऐसे ही 7 तथ्य हिन्दी फिल्मों के विषय में -

     पहली स्वदेशी रंगीन फिल्म - किसान कन्या
                                


किसान कन्या भारत की पहली रंगीन फिल्म नहीं थी। किसान कन्या से पहले आलमआरा रिलीज हो चुकी थी और एक मराठी फिल्म के कुछ दृश्य भी रंगीन फिल्माए गए थे। परंतु उन दोनों फिल्मों की प्रोसेसिंग विदेश में हुई थी। 1937 में रिलीज हुई हिन्दी फिल्म किसान कन्या भारत की पहली स्वदेशी रंगीन फिल्म थी। मोती गिडवाणी द्वारा निर्देशित इस फिल्म का निर्माण अर्देशर इरानी ने किया था। इस फिल्म की प्रोसेसिंग भारत में ही हुई थी.
                     पहला ऑन स्क्रीन चुम्बन



इस विषय पर लिखित रूप में शायद ही कुछ उपलब्ध है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि हिन्दी फिल्मों में पहला चुम्बन दृश्य देविका रानी और उनके पति हिमांशु राय के बीच फिल्माया गया था। चार मिनट का यह दृश्य 1933 में रिलीज हुई कर्मा फिल्म से था। बाद के वर्षों में भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड के कड़े नियमों के चलते निर्माता 'दो फूलों के टकराने' का प्रयोग करने लग।
पहली हिन्दी फिल्म जो ऑस्कर के लिए नामांकित हुई



1957 में रिलीज हुई मदर इंडिया। नरगीस और सुनील दत्त अभिनित यह महान फिल्म पहली हिन्दी फिल्म थी जिसे सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में नामांकन मिला था। हालांकि पुरस्कार की दौड़ में यह फिल्म पीछे रह गई।
                     पहली मल्टी स्टारर फिल्म



बीआर चोपड़ा की फिल्म वक्त हिन्दी सिनेमा की पहली मल्टी स्टारर फिल्म मानी जाती है।  यह फिल्म बीआर बैनर की पहली रंगीन फिल्म थी। इस फिल्म में बलराज साहनी, राज कुमार, शशि कपूर, सुनील दत्त, साधना और शर्मिला टैगोर जैसे दिग्गज कलाकारों ने अभिनय किया था। अमीर घराने पर आधारित इस फिल्म में दो हिरोइन और चार हीरो थे।
                       पहली लक्स अभिनेत्री



यूनीलिवर की साबुन लक्स हमेशा से प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को अपने ब्रांड अम्बेसडर के तौर पर अनुबंधित करती आई है। आज तक कई बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने लक्स स्नान किया है। लेकिन वह पहली अभिनेत्री कौन थी जिसने लक्स का विज्ञापन किया? जवाब है लीला चिटनिस। 1934 में वे एक लक्स विज्ञापन में नजर आई थी। इससे पहले लक्स केवल विदेशी अभिनेत्रियों को ही अपने कैम्पेन में लेता था।
पहली फिल्म निर्माण कम्पनी जिसके पब्लिक शेयर जारी किए गए



बॉलीवुड के शोमैन सुभाष घई ने इसकी शुरूआत की। 2001 में उनकी कम्पनी मुक्ता आर्ट्स ने 100 करोड़ की पब्लिक ऑफरिंग जारी की। मुक्ता आर्ट्स का आईपीओ 165 रूपए प्रति शेयर पर लिस्ट हुआ और 5.8 गुना अधिक सबस्क्राइब हुआ।
            पहला आईटम बॉय



आईटम गाना यानी वह गाना जिसका मूल फिल्म की कहानी से कोई लेना देना ना हो। इस गाने में ऐसी अभिनेत्री नृत्य पेश करती है जिसका फिल्म से कोई संबंध नहीं होता। इसे आईटम सोंग कहा जाता है और अभिनेत्री को आईटम गर्ल। लेकिन पहला आईटम बॉय किसे कह सकते हैं? जवाब है अभिषेक बच्चन। हिन्दी फिल्म रक्त में उन्होने एक आईटम सोंग किया था।

देखा है भीड़ को

देखा है भीड़ को ढोते हुए 
अनुशासन का बोझा,
उछालते हुए अर्थहीन नारे, 
लड़ते हुए दूसरों का युद्ध।
खोदते हुए अपनी कब्रें, 

पर .....नहीं सुना .....

तोड़ लिया हो 
कभी किसी भीड़ ने व्यक्ति की अंत:स्चेतना में खिला
अनुभूति का आम्लान पारिजात.....

Saturday, January 9, 2010


धरती सुनहरी अंबर नीला, हर मौसम रंगीला
ऐसा देस है मेरा, हां....... ऐसा देस है मेरा
बोले पपीहा कोयल गाये, सावन घिर घिर आये
ऐसा देस है मेरा.......
गेंहू के खेतों में कंघी जो करे हवाएं
रंग बिरंगी कितनी चुनरियाँ उड़ उड़ जाएं
पनघट पर पनहारन जब गगरी भरने आये
मधुर मधुर तानों में कहीं बंसी कोई बजाए, लो सुन लो,  कदम कदम पर है मिल जानी, कोई प्रेम कहानी
ऐसा देस है मेरा......
बाप के कंधे चढ़ के जहाँ बच्चे देखे मेले

मेलों में नटके तमाशे, कुल्फ़ी के चाट के ठेले
कहीं मिलती मीठी गोली, कहीं चूरन की है पुडिय़ा
भोले भोले बच्चे हैं, जैसे गुड्डे और गुडिय़ा
और इनको रोज़ सुनाये दादी नानी एक परियों की कहानी
ऐसा देस है मेरा........