**सुबह से लेकर रात तक.. भागती रहती है ये जिंदगी ..
कभी इस खबर.. कभी उस खबर.. मैं .. बेखबर सा होकर घूमता रहता हूँ..
बदबूदार लाशें... नालियों में सड़ती नवजात बेटियाँ... तो बेटो के जन्मोत्सव..
चौराहे पर एक कट चाय पीकर... मुई फिर भी कविता लिख लेता हूँ...
** निर्मोही सा ... अब ये मन .. नहीं पसीजता किसी घटना से.....
मोहल्ले के कुत्ते की मौत पर.... मैं कभी बहुत रोया था....
अब नर संहारो से भी कोई सरोकार नहीं ....
फिर भी देर रात घर लौटते वक्त.. मैं मुंडेर पर ..चिडियों का पानी भर लेता हूँ...
***परिभाषा काल की मुझे नहीं मालुम.. जाने कब क्या हो...
कोई मिला तो हंस लिए...न मिला तो चल दिए...
पदचाप अपने ...निशब्द भी मिले... तो यूंही कुछ गुनगुना लिया...
मैं कैमरा अपना पैक करके ..छोटे से कमरे का .. झाडू-पोंचा कर लेता हूँ...
षडयंत्र..राजनीति.. विरोध ..प्रदर्शन... जीवन के अब सामान्य पहलु से हो चले ...
गोपाल..बंटी...गोलू...आबिद की...याद बहुत आती है..खेतों की मिट्टी में गुजरा था बचपन..
अब धमाको में उड़े.. बच्चों का खून...
अपनी खबर देखते-देखते... मै अपने जूतों से चुपचाप साफ कर लेता
No comments:
Post a Comment