Thursday, January 21, 2010

खबरों की खबर

खबरों की खबर वह रखते हैं, अपनी खबर हमेशा ढंकते हैं,
दुनियां भर के दर्द को अपनी, खबर बनाने वाले,अपने वास्ते बेदर्द होते हैं,
आंखों पर चश्मा चढ़ाये, कमीज की जेब पर पेन लटकाये, कभी कभी हाथों में माइक थमाये
चहूं ओर देखते हैं अपने लिये खबर, स्वयं से होते बेखबर, कभी खाने को तो कभी पानी को तरसे
कभी जलाती धूप तो कभी पानी बरसे, दूसरों की खबर पर फिर लपक जाते हैं
मुश्किल से अपना छिपाते दर्द होते हैं, लाख चाहे कहो, आदमी से जमाना होता है
खबरची भी होता है आदमी, जिसे पेट के लिये कमाना होता है

दूसरों के दर्द की खबर देने के लिये, खुद का पी जाना होता है
भले ही वह एक क्यों न हो, उसका पिया दर्द भी, जमाने के लिए गरल होता, खबरों से अपने महल सजाने वाले
बादशाह चाहे, अपनी खबरों से जमाने को, जगाने की बात भले ही करते हों
पर बेखबर अपने मातहतों के दर्द से होते हैं, कभी कभी अपना खून पसीना बहाने वाले खबरची
खोलते हैं धीमी आवाज में अपने बादशाहों की पोल, पर फिर भी नहीं देते खबर, अपने प्रति वह बेदर्द होते हैं...


प्रस्तुति : देव अरोड़ा 

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