Friday, January 22, 2010

देश की धरती

मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन, किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊं सजा कर भाल जब भी, कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित, रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
मांज दो तलवार, लाओ न देरी, बांध दो कस कर कमर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी, शीश पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित, आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं
तोड़ता हूं मोह का बन्धन, क्षमा दो, गांव मेरा, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो
यह सुमन लो, यह चमन लो, नीड़ का त्रण त्रण समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं....


प्रस्तुति : देव अरोड़ा

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