मौन का सागर बना अपार, मैं इस पार - तू उस पार
कहीं तो रोके अहं का कोहरा, कहीं दर्प की खड़ी दीवार
शब्दों की नैया को बाँधे, खड़े रहे मंझधार।
शाख मान की झुकी नहीं, बहती धारा रुकी नहीं
कुंठाओं के गहन भंवर में, छूट गई पतवार
सुनो पवन का मुखरित गान, अवसादों का हो अवसान
संग ले गई स्वप्न सुनहले, खामोशी पतझार
लहरें देती नम्र निमंत्रण, संध्या का स्नेहिल अनुमोदन
अस्ताचल का सूरज कहता, खोलो मन के द्वार
प्रस्तुति - गरिमा बिश्नोई
Saturday, January 30, 2010
ReplyDeleteमौन का सागर
मौन का सागर बना अपार, मैं इस पार - तू उस पार
कहीं तो रोके अहं का कोहरा, कहीं दर्प की खड़ी दीवार
marmik abhivyakti ..
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