Saturday, October 30, 2010

सरहद पर परेशान किसान

श्रीगंगानगर। भारत-पाक सरहद पर बसे किसान इन दिनों खासी परेशानी का सामना कर रहे हैं। हालाद इस कदर बिगड़े हुए हैं कि किसान मरने तक को तैयार हैं, लेकिन उनकी समस्या पर न तो नौकरशाह गौर कर रहे हैं और न ही सफेदपोश। दरअसल, लंबे समय से विभिन्न समस्याओं से जूझ रहे किसानों के सामने हाल ही में आए एक सरकारी फरमान ने कई दुविधाएं खड़ी कर दी हैं'। इस फरमान के मुताबिक सीमा क्षेत्र में तारबंदी के पार दो फिट से ज्यादा ऊंची फसल पर पाबंदी लगा दी गई है। जबकि किसान सीमा क्षेत्र में जो भी फसल बोते हैं, उनकी ऊंचाई दो फिट से अधिक ही है। उक्त समस्या को लेकर किसान जिला प्रशासन से मिल चुके हैं और वे सरकार को भी अपनी समस्या से अवगत करवा चुके हैं। बहरहाल, किसान गुजारिश करते दिखे कि या तो उनकी जमीन को सरकार अपने कब्जे में लेकर हमें मुआवजा दे दे या सीमा पर खड़ा कर हमें गोली मार दे। वाकई में, यदि हालात यही रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस साधन-संपन्न जिले के सीमावर्ती किसान रोटी-रोटी को मोहताज हो जाएंगे।
यहां के ग्रामीण बताते हैं कि वे लंबे समय से परेशान हैं, लेकिन उनकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। न तो सरकार और न ही अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहे हैं तथा नेताओं से उम्मीद करना ही बेमानी लगता है। सीमावर्ती गांव खखां के दारासिंह कहते हैं कि जब से दो फिट से ऊंची फसल न बोने का फरमान आया है, वह इसी ऊहापोह में है कि आखिर खेत में क्या बोएगा। खुद के साथ-साथ उन्हें बच्चों के भविष्य की चिंता भी सताने लगी है। बकौल दारासिंह, 'पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी, जब सियासतदानों की कारगुजारियों के चलते देश का बंटवारा हुआ और आज हमें ये दिन देखने को मिले। अब तो हर रोज नई समस्या से जूझना हमारी नियती बन चुका है, लेकिन अब और बर्दास्त नहीं होता।' इसी तरह बुजुर्ग गुरप्रीतकौर कहती हैं कि यहां वर्ष 1984 के दौरान तारबंदी होनी शुरू हुई और करीब 22 वर्ष पूर्व (वर्ष 1989) तक यहां तारबंदी हो चुकी थी। इसी के साथ ही उनके बुरे दिन शुरू हो गए, क्योंकि तारबंदी के दौरान उनकी जमीनें उस पार चली गई। ऐसी ही बदहाल स्थिति गुरजंटसिंह के परिवार की है। ग्वार की फसल पकान पर है, लेकिन उसे काटने की इजाजत नहीं मिल रही है। गुरजंटसिंह नेताओं व अधिकारियों से मिलकर वह गुजारिश करता घूम रहा है कि सरकार उसे गोली मार दे तो ठीक है, ताकि सारी समस्या ही खत्म हो जाए। गुरजंटसिंह ने बताया कि उसकी जमीन में कॉटन व सरसों की फसल बहुत अच्छी होती है, लेकिन जो आदेश जारी किए गए हैं वे तो सरासर अन्याय है। अपने जवान बेटे को खो चुकी नसीबकौर ने बताया कि तारबंदी के उस पार जमीन होने के कारण हमेशा ही संकट खड़े होते रहे हैं। यही वजह है कि उनका एक बेटा मजदूरी करता-करता चल बसा। अब दो बेटियों की शादी करनी है, लेकिन नसीबकौर दो जून की रोटी को भी तरस रही हैं। बहरहाल, किसानों को केंद्र व राज्य सरकार से अब भी आस बंधी हुई है।
किसानों का कहना है कि यदि पंजाब में जमीनों का मुआवजा दिया जा सकता है तो फिर राजस्थान के किसानों से सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है? यही नहीं यदि सुरक्षा के नाम पर ऐसे आदेश जारी किए जाते हैं तो फिर दूसरे इलाकों में तारबंदी के समीप हालात बदतर क्यों है और सरकार उस इलाके के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाती? आखिर हमेशा से ही किसी न किसी तरह की मार झेलते आ रहे किसान ही इस आदेशों की चपेट में क्यों आ रहे हैं? वो भी उस हालात में जब किसान अपनी जमीन सरकार को सौंपने को तैयार हैं? उधर जिला कलेक्टर सुबीर कुमार भी मानते हैं कि किसानों की समस्या जायज है तथा वे कहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर बीएसएफ ने एक नॉटीफिकेशन जारी किया है, जिसके मुताबिक किसान तारबंदी के पास दो फिट से ऊंची फसल की बुआई नहीं कर सकेंगे। उनका मानना है कि निश्चित ही यह सुरक्षा का मुद्दा है, लेकिन किसानों की समस्या भी वाजिब है। जैसे भी संभव होगा, हम किसानों की इस जायज मांग को राज्य सरकार के जरिए केंद्र सरकार तक पहुंचाएंगे। 

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