श्रीगंगानगर। एक हम हैं कि देश को फिर से सोने की चिडिय़ा बनता देखना चाहते हैं और एक ये सरकारी कारिंदे जो देश को बार-बार कलंकित कर रहे हैं। फर्क बस इतना है कि हर बार चेहरा बदला होता है लेकिन हरकतें वही होती हैं। बेहद अफसोस होता है कि मेरे ऐसे देश में 'ऐसे' लोग भी हैं। दरअसल, राजस्थान के उत्तरी छोर पर स्थित राज्य के ग्रीन बैल्ट जिला श्रीगंगानगर में शवों के खरीद-फरोख्त का मामला प्रकाश में आया है और इसके साथ ही पकड़ में आए हैं कई सरकारी सौदागर। खाकी में छिपे इन सौदागरों के खिलाफ अब विभागीय कार्रवाई की जा रही है तथा कई कर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है। लेकिन इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस खुलासे के बाद हर कोई सकते में है, वहीं पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों में खलबली मची हुई है। बताया जाता है कि अभी कई और पुलिस कर्मियों व मेडिकल कॉलेज संचालकों के नाम सामने आ सकते हैं। मामले के अनुसार, पिछले वर्ष भाजपा नेता राजकुमार सोनी के युवा पुत्र राहुल सोनी की संदिग्धवस्था में मौत हो गई थी। राहुल को बेहोशी की हालत में शहर के नेहरू पार्क से एम्बुलेंस के जरिए सिविल हॉस्पीटल में भर्ती करवाया गया था, जहां उसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इसके बाद पुलिस ने बिना किसी शिनाख्त कार्रवाई के राहुल के शव को शहर के टांटिया मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया। उधर मृतक के पिता को खोजबीन के दौरान पता चला कि उनके बेटे का शव मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया है तो उन्होंने एतराज जताया, जिसके बाद कॉलेज प्रबंधन ने शव को परिजनों को वापिस लौटा दिया। इसके साथ ही राहुल के पिता ने पुलिस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत लावारिस शवों को लेकर विभिन्न जानकारियां मांगी। इन्हीं सूचनाओं में खुलासा हुआ कि पुलिस ने वर्ष 2006 से लेकर 2009 तक लावारिस शवों को निर्धारित नियम-कायदों की अवहेलना करते हुए निजी मेडिकल कॉलेजों को दे डाले। राहुल के पिता का आरोप है कि पुलिस ने इन शवों को हजारों से लाखों रुपयों के बीच बेचा। मामले की जानकारी मिलते ही पुलिस अधीक्षक उमेशचंद्र दत्ता ने निर्धारित प्रक्रिया की अनदेखी करने वाले चार सहायक उप निरीक्षक व एक हवलदार को 16 सीसी की चार्जशीट जारी कर दी। वहीं उक्त लोगों को लाइन हाजिर कर दिया है। यही नहीं तत्कालीन निरीक्षकों, छह उपनिरीक्षकों के खिलाफ भी कार्रवाई के लिए पुलिस महानिरीक्षक के समक्ष रिपोर्ट भेजी गई है। उधर यह मामला दो दिनों से विधानसभा में भी गूंज रहा है। इसके बाद गृह मंत्री ने इस मामले में निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है। सूत्रों के अनुसार पुलिस अधीक्षक दत्ता ने सहायक निरीक्षक भगवंतससिंह, सुखराम, खींवदान, सुभाष बिश्नोई व हवलदार जयकुमार भादू को चार्जशीट दी है। इसके अलावा वर्ष 2006 से 2009 के दौरान कोतवाली के प्रभारी रहे निरीक्षक रायसिंह बेनीवाल, नरेंद्र कुमार शर्मा, अश्विनी शर्मा व उपनिरीक्षक भानीसिंह, अवतारसिंह, कृष्ण कुमार, धर्मसिंह व अनिल मूंड के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा आईजी से की है। यही नहीं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजन दुष्यंत व महेंद्र हिंगोनिया के नेतृत्व में टीम गठित कर सभी थानों की जांच के आदेश भी दिए हैं। यह टीम सभी पच्चीस थानों में दस साल के दौरान मेडिकल कॉलेजों को सौंपे गए शवों के मामलों की जांच करेगी। कार्रवाई की तत्परता का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि एसपी ने महज तीन दिन में रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं। हालांकि सूत्र बताते हैं कि सभी थानों में से शहर के कोतवाली, जवाहरनगर, सदर व पुरानी आबादी थानों से सर्वाधिक शव मेडिकल कॉलेजों को सौंपे गए। उधर इस कार्रवाई के बाद पुलिस के अन्य अधिकारियों व कर्मियों में खलबली मची हुई हैं। क्योंकि उक्त जांच के बाद करीब दर्जन भर और कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। जानकार बताते हैं कि लावारिस शव को सरकारी मेडिकल कॉलेज को शिक्षण कार्य के लिए सौंपा जा सकता है। इसके लिए बकायदा नियम निर्धारित हैं। खास बात यह है कि निजी मेडिकल कॉलेज शव को जरूरत होने पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के मार्फत पुलिस से ले सकते हैं। लेकिन पता चला है कि अकेली कोतवाली पुलिस ने वर्ष 2006 से 2009 के दौरान 15 शवों को टांटिया मेडिकल कॉलेज व सुरेंद्रा डेंटल कॉलेज को सौंप दिया। पुलिस ने शवों के शिनाख्त के लिए इंतजार तक नहीं किया और राजस्थान एनोटोमिकल एक्ट के नियमों की पालना भी नहीं की।
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